उत्तराखंड की कला और संस्कृति को समझ पाना बहुत मुश्किल है। कभी प्रकृति के नये रूप के लिए यहाँ त्यौहारों और मेलों का आयोजन किया जाता है तो कभी देवी देवताएँ के आह्वान के लिए यहाँ पर विभिन्न पर्व मनाएं जाने का प्रावधान है। देवीय शक्तियों के विश्वास पात्र यहाँ के लोंगो द्वारा सदियों से मेलें मनाये जाते है। उन्ही मेलों में से एक है बैसाखी मेला जो की हर हर्ष बड़ी ही भक्ति भावना के साथ हर्ष और उल्लास के साथ मनाई जाती है। उत्तराखंड क्लब के इस लेख के माध्यम से हम आप लोगों के साथ बैसाखी मेला के बारें जानकारी देने वाले है।
बैसाखी मेला के बारें में
बैसाखी हिन्दू धर्म में मनाएं जाने वाले प्रमुख मेलों एवं त्यौहारों में से एक है। हर साल अप्रेल माह के 13 एवं 14 तारिक को मनाये जाने वाला बैसाखी मेला उत्तराखंड के प्रमुख मेलों में से एक है। हरिद्वार और ऋषिकेश में आज के दिन बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। इस दिन गंगा स्नान का बड़ा महत्व माना जाता है। इस लिए सभी लोगों के द्वारा गंगा स्नान करना जरुरी माना जाता है।
बैसाखी मेला कब आयोजित किया जाता है
हर वर्ष की भांति इस साल भी सभी भक्तगण बैसाखी मेला आयोजन के लिए बेसब्री से इन्तजार कर रहे है। बताना चाहेंगे की हर साल लगने वाला यह भव्य मेला बैसाखी माह में रवि की फसल पकने के दौरान इनकी कटाई की जाती एवं 13 अप्रैल 1699 को सिख पंथ के 10 वे गुरु श्री गुरु गोविन्द सिंह जी के द्वारा खालसा पंथ की स्थापना की गयी थी है। इसी दिन से ये दिन को महत्वपूर्ण माना जाता है। इस कारण मेले का आयोजन किया जाता है। लेकिन कभी कभी समिति द्वारा आयोजन दिनांक में परिवर्तन भी किया जाता है। यहाँ पर मेले के दौरान सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जिसमें सभी स्थानिया लोगों के साथ आस पास में रहने वाले गांव के लोग भी शामिल होते है।
बैसाखी मेला किस तरह से बनाया जाता है।
मेले का आयोजन समिति द्वारा किया जाता है। मेले के कुछ दिन पहले से ही हरिद्वार और ऋषिकेश एवं मेले वाले अन्य स्थान को सजा कर एक नया रूप दिया जाता है। रंग बिरंगी लाइटों के साथ चमचमाती मंदिर शृद्धालुओं को अपनी और आकर्षित करती है। मंदिर के साथ ही शहर निवासियों द्वारा अपने घरो को सजाया जाता है। आस पास के लोंगो के अलावा अन्य राज्य के श्रद्धालुओं द्वारा भी जम कर मेलें में हिस्सा लिया जाता है। मेले की शुरुवात सुबह से ही शुरू हो जाती है।