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उत्तराखंड का लोकपर्व चैतोल

by Surjeet Singh

उत्तराखंड की संस्कृति में त्यौहारों और लोक पर्व का योगदान काफी महत्वपूर्ण माना जाता है।  ऐतिहासिक और पौराणिक तौर पर उत्तराखंड की  संस्कृति में विभिन्न त्यौहारों और लोकपर्व मानाने का प्रचलन रहा है।  आज के दौर में भी कई प्रकार के लोकपर्व ऐसे है जो हमें केवल उत्तराखंड में देखने को मिलते है।  उन्ही त्यौहारों में से एक है चैतोल पर्व जो की उत्तराखंड में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

उत्तराखंड क्लब के इस लेख के माध्यम से हम आपके साथ चैतोल पर्व के बारें में जानकरी साझा करने वाले है।  इस लेख में हम आपको चैतोल पर्व क्या होता है और चैतोल पर्व कब मनाया जाता है तथा चैतोल पर्व के महत्व के बारें में भी बात करने वाले है। आशा करते है आपको आज के लेख जरूर  पसंद आएगा।

चैतोल पर्व क्या होता है

चैतोल एक तरह का लोकपर्व होता है जो की भाई द्वारा अपनी बहन को भिटौला देने के प्रचलन का प्रतिक माना जाता है।  हर साल मनाया जाने वाला यह पर्व उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकपर्व में से एक है।  बताना चाहते है की यह पर्व मूल रूप से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के सीमांत क्षेत्र में मनाया जाता है।  ऐतिहासिक और पौराणिक तौर पर भी चैतोल पर्व का बड़ा ही महत्व माना जाता है। लड़की के मायके में बनाये गए स्वादिष्ट पकवानों को भिटौला कहा जाता है और हर वर्ष भाइयों द्वारा इसे अपनी बहनों को ससुराल में देने का प्रचलन रहा है।

चैतोल पर्व  कब मनाया जाता है

चैतोल पर्व  देवी देवताओं के आस्था से जुड़ा हुवा है। हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाने वाला यह लोक पर्व हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा से एक दिन पहले से शुरू हो जाता है।  यह लोकपर्व दो दिन तक मनाये जाने का प्रावधान रहा है।  पहले दिन भगवान शिव जी  के प्रतिक के रूप में एक छत्र तैयार किया जाता है। जिसे यात्रा के साथ 22 गावों में ले जाया जाता है।  यह यात्रा का मुख्या अंग भी माना जाता है।  आज के दिन सभी भाई अपनी बहनों से मिलने उनके ससुराल जाया करते है।

चैतोल पर्व  2023 में कब है

चैतोल पर्व 2023 में कब है के बारें में बात करें तो आपको बता दे की चैतोल पर्व हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा की एक दिन पहले मनाया जाता है।  यानि की 2023 में चैतोल लोकपर्व 5 अप्रैल को मनाया जाएगा।  6 अप्रैल को चैत्र पूर्णिमा आ रही है ठीक उसके अगले दिन तक सीमांत  क्षेत्र के निवासी 22 गावों की यात्रा करते है।  जिसमें जवान लोगों के अलावा बच्चें और बुजुर्ग लोग भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है |

किस तरह से मनाया जाता है चैतोल पर्व

जैसा की हम  आपको पहले ही  बता चुके है।  चैतोल पर्व उत्तराखंड के पिथौरागढ़ के सीमांत क्षेत्र  में बड़े ही हर्ष और उल्लास के  साथ मनाया जाता है। चैतोल पर्व  को भगवान शिव जी की यात्रा के नाम से भी जाना जाता है।  हर वर्ष सीमांत क्षेत्र के लोग बड़े ही श्रद्धा और भक्ति के साथ इस त्यौहार का आयोजन करते है।  पर्व के कुछ दिन पहले से ही लोगों द्वारा तैयारी की जाती है।

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चैत्र पूर्णिमा से एक दिन पहले भगवान शिव जी के प्रतिक के रूप में एक छत्र तैयार किया जाता है।  यह पर्व  22 गावों की यात्रा के बाद ही सफल माना जाता है। सभी लोग अपने बहन के ससुराल भिटौला लेकर जाते है।  जिसका  हर बहन द्वारा बेसब्री के साथ इन्तजार किया जाता है।  22 गावों की यह यात्रा बिण गांव से शुरू होकर वापिस बिण गांव में समाप्त होती है।  समाप्ति के दौरान सभी भक्तों द्वारा जोर शोर के साथ नारें  लगाएं जाते है।

चैतोल पर्व  का पौराणिक महत्व

चैतोल पर्व का पौराणिक मान्यताओं के साथ भी  गहरा संबंध देखने को मिलता है। मान्यता है की आज के दिन भगवान शिव जी अपनी बहन को भिटौला देने उनके ससुराल गए थे।।  जैसा की  हम सभी लोग जानते है की उत्तराखंड की  भूमि देवी देवताओं का निवास स्थान हुवा करती थी।  चैत्र पूर्णिमा के दिन भगवान शिव जी अपनी  बहन असावरी को उसके ससुराल भिटौला देने गए थे।  तब से हर वर्ष भगवान शिव  जी की रस्म को संजोने  के लिए उत्तराखंड वासियों द्वारा भिटौला पर्व मनाया जाता है।  जिसमें सभी लोग अपने बहन को भिटौला देने उनके ससुराल जाया करते है।  देवी देवताओं की पूजा करके सभी लोग उज्जवल भविष्य की कामना करते है।

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