उत्तराखंड अपने पारम्परिक संस्कृति और रीति रिवाजों के चलते आज पूरे देश-विदेश में मशहूर है। जिसका कारण है यहाँ पर मनाएं जाने वाले विभिन्न प्रकार के स्थानिया त्यौहार जो की प्रकृति और मानवता के साथ संबंध दर्शाती है। ऐसा ही एक प्रसिद्ध त्यौहार है घी संक्रांति जो की उत्तराखंड निवासियों के लिए महत्व रखता है। उत्तराखंड क्लब के आज के इस लेख के माध्यम से आपके साथ घी संक्रांति का त्यौहार क्या होता है और घी संक्रांति त्यौहार का महत्व के बारें में जानकरी साझा करने वाले है।
घी संक्रांति का त्यौहार क्या होता है
घी संक्रांति त्यौहार उत्तराखंड में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाने वाला प्रमुख त्यौहारों में से एक है। जैसा की हम सभी लोग जानते ही है की उत्तराखंड प्रकृति की गोद में बसा एक राज्य है। प्रकृति की रचनाओं और उसकी सुंदरता का आभार प्रकट करने के लिए यहाँ त्यौहार मनाएं जाने का प्रचलन शुरू से ही रहा है।
जब नई नई लहराती हुई सुन्दर सी दिखने वाली फसल पर बालिया लगने लग जाती है तो उसकी ख़ुशी और अच्छी फसल की कामना करते हुई हर साल घी संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है। जिसे कई स्थानिया बोलियों में घी त्यार, घ्यू त्यार या ओलगिया के नाम से भी जाना जाता है।
घी संक्रांति का त्यौहार कब मनाया जाता है
बताया जाता है की जिस दिन जिस दिन भगवान सूर्य देव सिंह राशि में प्रवेश करते है और उसी दिन घी संक्रांति मनाई जाती है जिसे सिंह संक्रांति कहा जाता है। हिंदी कैलेंडर के अनुसार संक्रांति को उत्तराखंड में लोक पर्व की तरह मानाने का रिवाज रहा है। कृषि कार्यों को जीवन का आधार माने जाने के कारण जब नई फसलों पर बालिया लग जाती है तो उस ख़ुशी में घी संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है। यह हर साल भाद्रपद (भादो) महीने में मनाया जाता है।
2022 में घी संक्रांति कब है
2022 में घी संक्रांति कब है यह प्रश्न भी सभी उत्तराखंड वासियों में उलझन का विषय बना हुवा होगा। जैसा की हम आपको पहले ही बता चुके है की जिस दिन सूर्य देव सिंह राशि में प्रवेश करते है और उसी दिन घी संक्रांति मनाई जाती है। और इस साल यानि की 2022 में यहाँ दिन 17 अगस्त बुधवार को आ रहा है।
पौराणिक मानयताओं के आधार पर बताया जाता है की आज के दिन सभी लोग घी का सेवन जरूर करते है और जो लोग घी का सेवन नहीं करते है उसे अगले जन्म में घोंघा (गनेल) बनना पड़ता है।
घी संक्रांति का त्यौहार किस तरह से मनाया जाता है
घी संक्रांति त्यौहार को बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मानाने का रिवाज रहा है। जहाँ ये पर्व नई फसल के आगमन की ख़ुशी में मनाया जाता है वही यह पर्व लोगों के आपसी संबंद को मजबूती प्रदान करता है। लोगों में एकता का भाव प्रकट करता है। आज के दिन सभी लोग अपने दिन की शुरुवात घरों की लिपाई पुताई से करते है। पारिवारिक तौर पर देवी देवताओं की पूजा करने के बावजूद अपने परिवार की कुशलता और तरक्की की कामना करते है।
घी, दही और दूध आज के दिन देने का प्रचलन सदियों चला आ रहा है। इसलिए जिन लोगों के घर में दुधारू पशु नहीं होते उनकों ग्रामीणों द्वारा दही और घी दी जाती है। आज के दिन घर में बनायें पकवानों के अलावा फल और सब्जियों भी गाँव के परिवारों में बाटने का प्रचलन है। जो की लोगों के बीच आपसी एकता को दर्शाता है। बताया जाता है की आज के दिन घी का सेवन करना जरुरी माना जाता है। जो लोग आज के दिन घी का सेवन नहीं करते है तथ्यों के आधार पर वह अगले जन्म में घोंघा (गनेल) बनना पड़ता है।
घी संक्रांति त्यौहार का महत्व
हर पर्व की तरह घी संक्रांति त्यौहार का भी महत्व देखने को मिलता है। उत्तराखंड वासी कृषि पर निर्भर होते है इसलिए कृषि उपज को यहाँ पर देवता और भगवान का आशीर्वाद भी माना जाता है। आज के दिन भगवान सूर्य देव सिंह राशि में प्रवेश करते है।
हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से आज के दिन से नये महीने की शुरुवात होती है इसलिए इस दिन को बड़ा ही शुभ माना जाता है। ठीक उसी प्रकार से नये फसल पर बालिया लग जाने की ख़ुशी में देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है और सभी लोग परिवार की कुशलता के साथ तरक्की की कामना करते है।