धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। खूबसूरत वादियों और झील झरनों के अलावा यहाँ पर तमाम प्रकार के फल फूल और पेड़ पत्ते पाए जाते है। हर साल उत्तराखंड के निवासियों द्वारा उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई मनाई जाती है। बच्चों के द्वारा मनाये जाने वाले इस पावन त्यौहार को स्थानीय बोलियों में फूल संग्राद के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड क्लब के आज के इस लेख के माध्यम से हम आप लोंगो के साथ उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई का महत्व और इतिहास के बारें में बात करने वाले है।
फूलदेई का त्यौहार क्या होता है
देश के हर राज्य की तरह उत्तराखंड राज्य का भी सांस्कृतिक और पारम्परिक तौर पर काफी महत्व है। उत्तराखंड को धरती का स्वर्ग कहो या प्रकृति का वरदान बात एक ही होगी। यहाँ प्राकृतिक सौन्दर्यता के साथ साथ भिन्न भिन्न प्रकार के फूल पते खिलते है। जैसा की हम सभी इस बात से भलीभांति परिचित है की प्रकृति हर ऋतु में अपना रंग धारण करती है और अपनी खूबसुरता का प्रदर्शन करती है। उत्तराखंड प्राकृतिक खूबसुरता का एक जगमाता उदाहरण है। जब प्रकृति वसंत ऋतु में प्रवेश करती है तो प्रकृति की खूबसूरती का कोई ठिकाना नहीं होता। यह हरे भरे दिखने के साथ साथ हजारों प्रकार के फूलों से चमचमाती है। प्रकृति के इस रूप का शुक्रगुजार करने के लिए उत्तराखंड के निवासियों द्वारा लोकपर्व फुलदेई को मनाया जाता है।
फूलदेई पर्व कब मनाया जाता है
जैसा की हम आपको पहले ही बता चुके है की फूलदेई का पावन पर्व प्रकृतिक के वसंत ऋतु आगमन पर मनाया जाता है। लेकिन भारतीय कैलेंडर के अनुसार से आज के दिन यानि की फूलदेई के दिन चैत्र मास का प्रथम दिन होता है और हिन्दू सभ्यता के अनुसार आज के दिन से नव वर्ष की शुरुवात होती है। इसलिए हम कह सकते है की फूलदेई का त्यौहार प्रकृति के नये रूप और नव वर्ष के स्वागत के लिए मनाया जाता है। हर साल मनाये जाने वाले इस पर्व की केवल देश में ही नंही बल्कि विदेशों में भी चर्चा होती है।
फूलदेई पर्व का महत्व है
अभी तक हम लोग फूलदेई कब मनाया जाता है इस बात से भलीभांति परिचित है। उत्तराखंड की संस्कृति और परम्परा में फूलदेई त्यौहार का बड़ा ही महत्व माना जाता है। यह न केवल प्रकृति की खूबसूरती का आभार प्रकट करने के लिए मनाया जाता है बल्कि स्थानीय लोंगो के अनुसार मान्यता है कि आज के दिन देवताओं के लिए घरों के दरवाजे पर फूल रखने से परिवार को समृद्धि और आशीर्वाद मिलता है । आज के दिन गांव के सभी बच्चों द्वारा गांव के सभी घरों के देहली में फूल बिखेर कर देवी देवताओं का आशीर्वाद लेने के साथ साथ वसंत ऋतु का स्वागत किया जाता है।
फूलदेई पर्व का इतिहास
फूलदेई एक इतिहास का विषय बना हुवा है उत्तराखंड परम्परा में इसका अलग इतिहास है और पौराणिक गाथाओं में इसका अलग ही इतिहास देखने को मिलता है। बताया जाता है की एक राजकुमारी का विवाह दूर किसी पहाड़ी गांव में हो जाती है जहा उसे अपने मायके की याद सताती है। वह अपने सासु माँ से मायके जाने का आग्रह करती है लेकिन उसकी सास मायके जाने से माना कर देती है। मायके की याद में एक दिन राजकुमारी की मृत्यु हो जाती है और उसके ससुराल वाले उसे मायके के नजदीक ही दफना देते है। जिस स्थान पर राजकुमारी को दफनाया गया था इस जगह कुछ समय बाद एक पिले रंग का आकर्षक फूल खिल उठता है जिसे फ्योंली के नाम से जाना जाता है। इसलिए राजकुमारी की याद में फूलदेई मानाने की परम्परा है।
फूलदेई कैसे मनाई जाती है
उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई बड़े धूम धाम और रंगत के साथ मनाया जाता है। बताना चाहेंगे की फूलदेई का त्यौहार बच्चों द्वारा मनाया जाता है तथा बड़े बुजुर्गों द्वारा इसका मार्गदर्शन किया जाता है। इस दिन सभी बच्चें सुबह स्नान करके अपने दिन की शुरुवात करते है और नये नये कपड़ें पहनते है। फूलदेई के कुछ दिन पहले ही घरों की साफ़ सफाई करके लाल मिट्ठी ( जंगल में पाए जाने वाली लाल रंग की विशेष मृदा ) के द्वारा लिपाई की जाती है। सभी बच्चे एकत्रित होकर पास के जंगलों से तरह तरह के खूबसूरत फूल इक्क्ठा करते है जिनमे फ्योली, बुरांश, सरसों और अन्य स्थानीय फूल शामिल होते है। घर आकर सभी बच्चों की एक एक पारम्परिक तौर से बनी टोकरिया दी जाती है जिसमे इन सभी फूलों के अलावा स्थानीय मिठाई और पकोड़े भी शामिल होते है। बच्चों द्वारा हस्ते खेलते हुए सभी घरों के देहली पर फूल बिखेर कर देवी देवताओं का आशीर्वाद लेकर परिवार की खुशाली की कामना करते है। साथ ही इस दिन गावों के बुजुर्गों द्वार वाद्य यंत्रों के माध्यम से अपना मनोरंजन किया जाता है।