हमारे भारत वर्ष में विभिन्न त्यौहारों के साथ कई प्रकार के महत्वपूर्ण दिवस मनाये जाने का रिवाज शुरू से ही रहा है । जिनमे से से एक है कृष्ण जन्माष्टमी. जो की हर साल एक विशेष तरह से मनाया जाता है। उत्तराखंड क्लब के आज के माध्यम से हु आपके साथ कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व और इतिहास के साथ उत्तराखंड में कृष्ण जन्माष्टमी कैसी मनाई जाती है के बारें में जानकारी साझा करने वाले है। आशा करते है की आपको यह लेख पसंद आएगा। इसलिए इसे पूरा पढ़ना बिलकुल भी न भूलें।
कृष्ण जन्माष्टमी क्या होती है
कृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्री विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। जैसा की हम सभी लोग जानते है की मनुष्य जगत की इस धरती पर विभिन्न प्रकार के लोगों का निवास है। धरती में बढ़ रहे अत्यचारों और पापों को कम करने के लिए भगवान को किसी न किसी रूप में धरती पर कदम रखना पड़ता है। और श्री कृष्णा भगवान भी उन्ही में एक है जिन्होंने धरती में बढ़ रहे अत्याचार को मिटाने के लिए इस धरती पर कदम रखा। इसलिए हर वर्ष भगवान श्री कृष्ण के जन्म दिवस के रूप में जन्माष्टमी मनाई जाती है।
जन्माष्टमी कब मनाई जाती हैं
बहुत से लोगों के मन में यह भी प्रश्न होता है की आखिर ये जन्माष्टमी कब मनाई जाती हैं। जन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है और हिन्दू कैलेंडर के अनुसार यह हर साल कृष्ण पक्ष के आठवें दिन ( अष्टमी ) के भाद्रपद में मनाया जाता है। जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार अगस्त या सितंबर माह के साथ ओवरलैप होता है।
जन्माष्टमी कब है 2022
हर साल की तरह इस साल भी सभी लोंगो को श्री कृष्ण जन्माष्टमी का बड़ा ही इन्तजार है। बताना चाहेंगे श्री कृष्णा जन्माष्टमी जैसा की हम आपको पहले ही बता चुके है की यह हर वर्ष कृष्ण पक्ष के आठवें दिन ( अष्टमी ) के भाद्रपद में मनाया जाता है। और बात करें 2022 की तो यह दिन 2022 में 18 अगस्त को आ रहा है। लेकिन कई लोगों को इस बात की भी उलझन है की जन्माष्टमी 18 अगस्त को है या 19 अगस्त को। बता दे की जन्माष्टमी इस साल अष्टमी की तिथि यानि की 18 अगस्त को शाम 09 बजकर 21 मिनट से प्रारंभ होगी और 19 अगस्त को रात के 10 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए जन्माष्टमी का वर्त 18 अगस्त को है।
कृष्ण जन्माष्टमी का इतिहास
भगवान श्री कृष्ण के जन्म के पीछे भी बड़ा राज छुपा है। ऐतिहासिक कहानियों के आधार पर पता चलता है की धरती के अत्याचारों को मिटाने और कंश जैसे यौद्धा को मारने के लिए माता देवकी और वासुदेव जी के द्वार पुत्र के रूप में भगवान श्री कृष्ण प्राप्त हुए। जिनका पालन पोषण माता यशोदा और नन्द जी के द्वारा किया गया। धरती के पापों को मिटाने और कंश का नाश करने के लिए भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण ने जन्म लिया। तब से हर वर्ष जन्माष्टमी मनाई जाती है।
कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व
कृष्ण जन्माष्टमी का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्व है। मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है। भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस दिन हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा उपवास रखा जाता है। मंदिरों में विशेष प्रकार की सजावट करके भगवान की पूजा की जाती है। माना जाता है की आज के दिन भगवान श्री कृष्ण से जो भी भक्त सच्चे मन से कामना करते है। भगवान उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण करते है। कृष्ण जन्माष्टमी का वर्त रात के 12 बजे के बाद खोलें जाने का रिवाज है। इसके साथ ही कुछ स्थानों पर दही हांड़ी का उत्सव भी बड़े ही जोर सोर से मनाया जाता है।
उत्तराखंड में जन्माष्टमी का महोत्सव
अपने पारम्परिक रीति रिवाजों द्वारा उत्तराखंड में जन्माष्टमी का उत्सव बड़े ही जोर शोर के साथ मनाया जाता है। केवल बड़ों के द्वारा ही नहीं बल्कि बच्चों द्वारा भी यह पर्व बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। आज के दिन की शुरुवात सभी लोग सुबह स्नान करके नए कपड़ें पहन कर करते है। परम्परा के अनुसार सभी लोग अपने से बड़े का पैर छू कर आशीर्वाद प्राप्त करते है। उसके बाद पहले घर पर भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है और साथ अन्य देवी देवताओं की भी पूजा की जाती है। बाजारों में आज के दिन तरह तरह के फल आ जाते है सभी एक दिन पहले ही प्रसाद के रूप में फल खरीद लेते है।
इसके अलावा सभी बच्चों और बड़े लोंगो द्वारा अपने घर के पास वाले श्री कृष्ण की मंदिर में जा कर भगवान भगवान की पूजा की जाती है। सबसे बड़ी खास बात है की आज के दिन सभी लोगों में एकता देखने को मिलती है। बच्चों की अलग टोलिया जाती है तथा माताओं और बहनों की अलग अलग जोड़ियां देखने को मिलती है। शाम को घर पहुंच कर सभी लोग एकत्रित होकर भजन कीर्तन किया करते है । इस तरह से कुछ उत्तराखंड में जन्माष्टमी का महोत्सव मनाया जाता है।