उत्तराखंड कुदरत के खजाने से मिला हुआ एक सुंदर सा तोहफा है जहां शुद्ध वातावरण और ताजी हवाओं के साथ हरे-भरे मैदान और विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधों और जड़ी बूटियां भी पाई जाती है| जिनका उल्लेख ग्रंथों में भी किया गया है शायद यही कारण है कि उत्तराखंड को देवभूमि के नाम की संज्ञा दी गई है| उत्तराखंड में तमाम प्रकार के जड़ी बूटियां पाई जाती है| विभिन्न वनस्पतियों का खजाना होने कारण चरक संहिता में उत्तराखंड को वानस्पतिक बगीचा का नाम दिया गया है| अधिकांश जड़ी बूटियां हिमालय से प्राप्त होती है जिससे हिमालय को हिमवंत औषधं भूमिनाम. का नाम दिया गया| यहां पाए जाने वाले विभिन्न जड़ी बूटियों का उपयोग विभिन्न प्रकार के रोगों एवं औषधीय बनाने में किया जाता है. वैसे देखा जाए तो गढ़वाल मंडल हो या कुमाऊं मंडल लगभग हर जगह विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियां पर्याप्त मात्रा में पाई जाती है. सरकार द्वारा इन जड़ी-बूटियों को तराशा जाता है और तराशने के बाद इन सभी का रसायन शोध किया जाता है जिसके बाद औषधियां और दवाइयां बनाने में जड़ी बूटियों का प्रयोग किया जाता है. इन सभी जड़ी बूटियों का शोध कार्य करने के लिए विभिन्न प्रकार के संस्थाएं बनाई गई है जिनका लाइसेंस सरकार के द्वारा पारित किया जाता है. उत्तराखंड में पाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियां जगह एवं पहाड़ों की ऊंचाई के अनुसार पाई जाती है यहां पाए जाने वाले प्रमुख जड़ी बूटियां कुछ इस प्रकार से है !
उत्तराखंड राज्य में पाई जाने वाली प्रमुख जड़ी बूटियां
1- भीमल – भीमल एक पौधा होता है जोकि उत्तराखंड के लगभग हर क्षेत्र में पाया जाता है. तिमले के पेड़ जैसा दिखने वाला यह पौधा लगभग 15 से 20 फिट का ऊंचा होता है हरे भरे दिखने वाले इस पौधे का संपूर्ण भाग उपयोगी है इसके कोमल शाखाओं को कूटकर शैंपू बनाया जाता है स्थानीय लोगों द्वारा इसकी टहनियों से खाल निकालकर शैंपू के लिए प्रयोग किया जाता है|
2- एलोवेरा – एलोवेरा उत्तराखंड के हर क्षेत्र में पाए जाने वाला एक छोटा सा कोमल सा प्लांट होता है जो कि देखने में काफी छोटा और हरा भरा दिखाई देता है औषधीय गुणों से परिपूर्ण एलोवेरा का उपयोग कई प्रकार के रोगों एवं आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने में किया जाता है. बात की जाए यदि इसके प्राप्त होने की तो यह लगभग उत्तराखंड के हर घरों में आपको देखने को मिल जाता है|
3- ब्राही – जिसे बहू वर्षीय शाक के नाम से भी जाना जाता है यह पौधा उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में अधिक संख्या में पाया जाता है आयुर्वेद के अनुसार इब्राहिम बुद्धि वर्धक,पितनाशक और शरीर को ठंडक पहुंचाने का कार्य करता है. इसके अलावा आयुर्वेद में इसका उपयोग तमाम प्रकार के प्रोडक्ट एवं दवाइयां बनाने में किया जाता है जैसे कि डायबिटीज और दिल के रोगों में मिलने वाली दवाइयों में ब्राह्मी का उपयोग किया जाता है|
4- कणडाली – कणडाली एक छोटा सा हरा भरा दिखने वाला यह पौधा उत्तराखंड के हर क्षेत्र में बहुतायत में पाया जाता है. जिसे उत्तराखंड की स्थानीय बोलियों में बिच्छू घास के नाम से भी जाना जाता है इसके पत्तियों का उपयोग सब्जी बनाने में की जाती है तथा बचा हुआ हिस्सा पशुओं के चारे के रूप में भी उपयोग किया जाता है. आम तौर पर इसका प्रयोग ठंडियों मैं किया जाता है क्योंकि यह काफी गर्मी होती है बिछुआ घास के बीजों का उपयोग पेट साफ करने के लिए भी किया जाता है|
5- तुलसी – वैसे तो सभी लोग तुलसी के बारे में जानते ही होंगे लेकिन बताना चाहेंगे कि तुलसी की तमाम प्रकार की किस्में आयुर्वेद में मौजूद है लेकिन उत्तराखंड में तुलसी की अलग किस में पाई जाती है. तुलसी का उपयोग तमाम प्रकार की दवाइयां जैसे की इम्युनिटी बढ़ाने , झड़ते हुए बालों को रोकने, बुखार और सिर दर्द आदि रोगों के दवाइयां बनाने में उपयोग की जाती है|
6- जिंबू – जिंबू उत्तराखंड में पाए जाने वाली यह एक दुर्लभ किस्म की जड़ी बूटी है , जिसे फरान कहा जाता है, जिंबू प्याज के परिवार से संबंधित एक जड़ी बूटी है जो कि उत्तराखंड के हर जिले में व्यापक रूप से पाई जाती है उपयोग पारंपरिक चिकित्सा के लिए किया जाता है लेकिन स्थानीय लोग इसका उपयोग मुख्य रूप से स्वाद और मसाले के रूप में किया करते हैं क्योंकि स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक साबित होती है|
7- हिसालु – जिसे आमतौर पर हिंसोल के नाम से भी जाना जाता है उत्तराखंड राज्य का एक पहाड़ी फल एवं जड़ी बूटी है जो कि लगभग उत्तराखंड के हर जिले में पर्याप्त मात्रा में पाई जाती हैं यह बूटी ग्रीष्म ऋतु में पाई जाती है. इसका फल छोटा सा और खूबसूरत होता है जिसका रंग ऑरेंज कलर का होता है इसके फल में एंटी ऑक्सीडेंट तत्व भरपूर मात्रा में पाया जाता है जो की इम्युनिटी बढ़ाने का कार्य करती है|
8- काफल – उत्तराखंड के जंगलों में पाए जाने वाला यह पौधा हरा भरा और लगभग 15 से 20 फीट ऊंचा होता है जो कि उत्तराखंड में स्थित ऊंचे ऊंचे पहाड़ों में अधिक मात्रा में पाया जाता है इसके ऊपर एक लाल रंग का फल लगता है जिसे काफल के नाम से जाना जाता है| इसका उपयोग या यूं कहे कि इससे होने वाले फायदे इम्यूनिटी बढ़ाने और ग्रीष्म ऋतु में शरीर को ठंडक पहुंचाने का कार्य करती हैं. काफल फल उत्तराखंड में काफी प्रसिद्ध है |
9- दूब धास – उत्तराखंड के जंगलों में पाए जाने वाली एक घास होती है, जिसे दुर्वा या दूब के नाम से जाना जाता है यह उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में पाई जाती है इसका उपयोग मुंह में छाले एवं त्वचा संबंधित रोगों के लिए किया जाता है|
10- मरोड़ फली – मरोड़ फली एक छोटे झाड़ी में मार्च में लगने वाली फली का नाम है जिसे मरोड़ फली के नाम से जाना जाता है इसके फलों का आकार या यूं कहें कि इसका फल रस्सी के तरह मुड़ा हुआ होता है जिसके कारण इसका नाम मरोड़ फली रखा गया है. यह पौधा उत्तराखंड के पहाड़ों में पाया जाता है जोकि 5 से 15 फुट ऊंचा होता है इसका औषधीय प्रयोग शरीर को शीतल करने और कफ और पित का शमन करने के साथ-साथ खुजली के इलाज में भी किया जाता है|
उत्तराखंड के प्रसिद्ध औषधीय शोध संस्थान
जैसा कि हमने आपको बताया है कि उत्तराखंड में पाए जाने वाली तमाम प्रकार की जड़ी बूटियों का शोध परीक्षण करने के लिए विभिन्न प्रकार की सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाएं बनाई गई है, जिन का मुख्य उद्देश्य राज्य में पाई जाने वाली जड़ी बूटियों का शोध करके उनका उपयोग और वह दवाइयां बनाने में किस प्रकार से मददगार साबित हो सकती है यह सब जानकारियां हासिल करना है जिनके नाम निम्न्न प्रकार से है|
1- जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान – यह संस्थान उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले के गोपेश्वर में स्थित है जड़ी-बूटी शोध एवं विकास स्थान की स्थापना सन 2014 में की गई|
2- रसायन विभाग एवं वनस्पति विभाग – इसे गढ़वाल विश्वविद्यालय के नाम से भी जाना जाता है यह राज्य के श्रीनगर शहर में मौजूद है|
3- वन अनुसंधान संस्थान – वन अनुसंधान संस्थान का कार्य वनों में पाए जाने वाली विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधों एवं जड़ी बूटियों के बारे में शोध करना है यह राज्य की राजधानी देहरादून में स्थित है वन अनुसंधान संस्थान की स्थापना सन 1906 में की गई|
4- रसायन विभाग एवं वनस्पति विभाग – इसे कुमाऊं विश्वविद्यालय के नाम से भी जाना जाता है यह राज्य के नैनीताल जिले में स्थित है|
5- उच्च स्तरीय पौध शोध संस्थान – यह संस्थान राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले के श्रीनगर क्षेत्र में स्थापित किया गया है|