साहित्य प्राचीन समय से ही मानवीय भावनाओं की व्यक्ति का साधन रहा है। शुरू से साहित्य ने मानवीय जीवन की पीड़ा के साथ सांस्कृतिक एवं कलात्मक पहलू को रचा है। उत्तराखंड के सर्वांगीण विकास में साहित्य की अहम् भूमिका रही है। उसी साहित्यिक क्षेत्र के प्रसिद्ध कवि रह चुके मनोहर श्याम जोशी जी की कमी आज भी उत्तराखंड साहित्य में महसूस की जा सकती है। उत्तराखंड साहित्य में उनका अनमोल एवं सराहनीय योगदान रहा है। उत्तराखंड क्लब जीवन परिचय की उसी श्रेणी में आज हम आप लोंगो के साथ मनोहर श्याम जोशी के जीवन परिचय के बारें में बात करने वाले है।
नाम | मनोहर श्याम जोशी |
जन्म | 9 अगस्त 1933 |
जन्म स्थान | राजस्थान |
पिता का नाम | प्रेमवल्लभ जोशी |
माता का नाम | रुक्मिणी देवी |
व्यवसाय | कवि |
मनोहर श्याम जोशी जीवन परिचय
प्रसिद्ध कवि मनोहर श्याम जोशी का जन्म एक मध्यवर्गीय परिवार में सन 9 अगस्त 1933 को राजस्थान के अजमेर शहर में हुआ। उनके माता – पिता उत्तराखंड के कुमाऊँ परिवार से सम्बंधित थे जो की कला एवं साहित्य प्रेमी थे। बचपन में ही पिता एवं बड़े भाई का छाया सिर से चले जाने के कारण उनका बचपन पारिवारिक दायित्व एवं कष्टमय के साथ व्यतीत हुआ। लेकिन उनका व्यक्तित्वा सरल एवं मिलनसार रहा है। वे एक संघर्षशील प्रवृत्ति के व्यक्ति थे |
मनोहर श्याम जोशी की शिक्षा
मनोहर श्याम जोशी की प्रारंभिक शिक्षा अजमेर शहर के एक छोटे से पाठशाला से शुरू हुई। जहाँ से उन्होंने अपनी इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा पूर्ण की। हिंदी भाषा के कवि मनोहर श्याम जोशी हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी भाषा के ज्ञाता भी थे। हिंदी के अलावा उन्हें अंग्रेजी भाषा में भी रूचि थी। इसलिए वह अपनी परीक्षा में सवालों के जवाब भी अंग्रेजी में ही देना पसंद करते थे। वे अपने स्कूल के मेधावी छात्रों में से एक थे। पढ़ाई लिखाई में अच्छे होने के साथ वह प्रत्येक कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करते थे।
अजमेर से उन्होंने अपनी इण्टरमीडिएट परीक्षा की शिक्षा पूर्ण की जिसके पश्चात वह उच्च शिक्षा के लिए चले गयें। जहाँ उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में सिविल इंजीनियरिंग के लिए प्रवेश लिया। हिंदी उन्हें जरा तंग का विषय लगता था लेकिन जब इस दौरान उन्होंने सज्जनता का दंड कहानी पढ़ी जिससे उन्हें हिंदी भाषा में रूचि होने लगी और वे हिंदी की और आकर्षित होने लगें। जिसके बाद उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में बी०एस०सी० शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रवेश लिया और वह लेखन कला की ओर अपने कदम बढ़ाते चलें गयें।
मनोहर श्याम जोशी लेखकीय जीवन
मनोहर जी की लेखनीय जीवन की शुरुवात विधार्थी जीवन में हो गई थी। हिंदी भाषा उन्हें तंग लगती थी लेकिन निरंतर प्रयास और लिखने की लगन ने उन्हें कभी हार मानने को मंजूर महि किया। वैसे तो प्रेम चंद एवं अन्य साहित्यकरों के लेख ने उनकी लेखनीय कला में मदद की लेकिन लेखन कला में अपने गुरु वह सबसे पहले अपने चाचा भोलादत्त जोशी को मानते थे। लेखन की प्रारंभिक ज्ञान उन्होंने अपने चाचा से ही प्राप्त किया। जिनके सुझाव में उन्होंने ” डर से में क्यों डरता हूँ ? ” लिखा। इस लेख में बहुत सी भाषाई त्रुटिया होने के कारण उनके चाचा ने उन्हें दुबारा लिखने के लिए प्रोत्साहित किया |
अपनी दो कहानियों को फाड़ कर उन्होंने तीसरी कहानी ‘मैडिरा-मैरून’ लिखी जिसकों उन्होंने लेखक संघ की बैठक के समक्ष रखा। अपनी इस कहानी को उन्होंने वचन किया नगर जी प्रभावित हुई और उन्हें गला लगा लिया। इस बैठक के बाद मनोहर श्याम जोशी ने नगर जी को ही अपना गुरु मान लिया और उन से ही लेखन का पाठ पढ़ते रहें।
जनसत्ता के परिशिष्ट के लिए उनके द्वारा साहित्य, रंगमच एवं खेलकूद आदि के विषयों पर लिखना शुरू किया। लेखनीय कार्य के साथ साथ वे हिन्दी समाचार कक्ष में नौकरी करने लगे। इसी बीच उनकी पहली कहानी ‘धुआँ’ प्रकाशित हुई जो की मुंबई में सरगम और सुदर्शन पत्रिका के माध्यम से जनता तक पहुंची।
मनोहर श्याम जोशी की कहानियाँ
उपन्यास के नाम | प्रकाशन वर्ष |
उत्तराधिकारिणी | 1976 |
कुरु कुरु स्वाहा | 1980 |
कसप | 1982 |
ट-टा प्रोफेसर | 1995 |
हरिया हरक्यूलीज की हैरानी | 1996 |
हमजाद | 1998 |
कयाप (लघु उपन्यास) | 2000 |
मनोहर श्याम जोशी को प्राप्त सम्मान
- मनोहर श्याम जोशी को सन् 1974 में पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान के लिए मातुश्री’ पुरस्कार दिया गया।
- मनोहर श्याम जोशी को कहानी संग्रह एक दुर्लभ व्यक्तित्व के लिए उत्तर प्रदेश द्वारा पुरुस्कृत किया गया।
- 1990 में उन्हें ‘अट्टहास शिखर’ सम्मान प्राप्त हुआ।
- 1993 में जोशी जी को ‘शारदा सम्मान’ प्राप्त हुआ |
- साहित्य में उनका अनमोल एवं सराहनीय योगदान के लिए 2005 में साहित्य अकादमी का प्रतिष्ठित पुरस्कार दिया गया था |