उत्तराखंड जिसे देव भूमि के नाम से जाना जाता है। भारत का एक मात्र ऐसा राज्य है जो अपनी कला और संस्कृति के साथ प्रकृति के विहंगम दृश्यों और धार्मिक अनुष्ठानों के तौर जाना जाता है। जिसे धरती के स्वर्ग कहने में कोई बुराई नहीं होगी। प्रकृति की इसी सौन्दर्यता का शुक्रगुजार करने के लिए यहाँ पर भिन्न भिन्न प्रकार के लोकपर्व एवं मेलों को मनाएं जाने का प्रावधान रहा है। जिनमे से एक है नंदा देवी महोत्सव। उत्तराखंड क्लब के आज के इस लेख के माध्यम से हम आप लोगों के साथ नंदा देवी मेला महोत्सव का महत्व और इतिहास के बारें में जानकारी साझा करने वाले है इसलिए इस लेख को अंत तक पढ़ना बिलकुल भी न भूलें।
नंदा देवी महोत्सव क्या है
नंदा देवी महोत्सव उत्तराखडं के निवासियों द्वारा बड़े ही हर्ष और उल्लास के मनाये जाने वाले मेलों में से एक है। नंदा देवी महोत्सव माँ नंदा को समर्पित है। हिमालयी क्षेत्र में माँ नंदा का स्थान सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसलिए हर वर्ष धूम धाम से नंदा देवी महोत्सव मनाया जाता है। किदवंतियों के अनुसार माँ नंदा और सुनंदा दो बहने थी। जिनकी सदियों साल पहले से पूजा की जाती है जिसका उल्लेख पुराणों में भी देखने को मिलता है। स्थानिया लोगों की मान्यता है की देवी नंदा हिमालय की सुपुत्री है और माँ दुर्गा के नवरुपों से एक है। जो की हमेश इस क्षेत्र के निवासियों की रक्षा करती है |
नंदा देवी महोत्सव क्यों मनाया जाता है
नंदा देवी उत्सव मानाने के पूछे कई ऐतिहासिक पहलु जुड़े हुए है। बताया जाता है की देवी नंदा इस क्षेत्र की कुलदेवी और कुल रक्षक के रूप में पूजे जाती है। मान्यता है की हिमालय क्षेत्र के लोग या उत्तराखंड वासियों के लिए देवी नंदा का स्थान सर्वोपरि है। यहाँ तक की उत्तराखंड में देवी नंदा के नाम से अनेकों स्थल है। जो की नदिया , पर्वत श्रृंखलाएं और मंदिर आदि नंदा के नाम से जानी जाती है।
यह न केवल एक जगह या मंदिर का नाम न होकर गढ़वाल एवं कुमाऊ के लोगों का जीवंत रिश्ता है जो आपसी मेल मिलाप को बढ़ाता है।
हम कह सकते है की नंदा देवी महोत्सव आस्था और भक्ति भावना के साथ आपसी मित्रता को बनाये रखने के लिए मनाया जाता है। हर साल लगने वाला यह भव्य मेला नंदा देवी पर्वत पर तीन दिनों तक चलता है।
नंदा देवी महोत्सव कब मनाया जाता है
नंदा देवी का पर्व हर वर्ष बड़े ही धूम धाम और हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। यदि बात की जाये नंदा देवी मेले के आयोजन तिथि की तो बताना चाहेंगे की नंदा देवी मेले का आयोजन हर वर्ष भाद्र मास की अष्टमी ( नंदा अष्टमी ) को मनाया जाता है। पिछले दो सालों से कोरोना के चलते मेले का आयोजन नहीं किया गया था। लेकिन इस साल 2022 में पर्व की तैयारी जोर शोर पर है। पंचमी तिथि से ही मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें देवी की दो प्रतिमाएं बनाई जाती है और जागर के माध्यम से मेले का शुभारम्भ किया जाता है। श्रीराम सेवक सभा पदाधिकारियों के अनुसार इस साल 2022 में नंदा देवी पर्व एक से सात सितम्बर तक मनाया जायेगा।
नंदा देवी मेला महोत्सव किस तरह से मनाया जाता है
उत्तराखंड में नंदा देवी महोत्सव हर साल बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। आस्था और भक्ति का प्रतिक यह मेला तीन से चार दिन तक मनाया जाता है। महोत्सव का शुभारम्भ पंचमी तिथि से किया जाता है। हास्य द्वारा निर्मित माँ नंदा और सुनंदा की प्राकृत प्रतिमाएं बनाई जाती है। प्रतिमाएं मुख्या रूप से नंदा पर्वत के सामना ही बनाई जाती है। षष्टी के दिन पुजारियों द्वारा गोधूली के समय पूजन का सामान और श्वेत वस्त्र लेकर केले के झुरमुटों के पास जाते है और पूजा कार्य होने के बाद धूप दीये जलाकर अक्षत मुट्ठी में लेकर कदली स्तम्भ की ओर फेंके जाते हैं। मान्यता अनुसार सबसे पहले हिलने वाले स्तम्भ से देवी नंदा की प्रतिमा बनाई जाती है और जो स्तम्भ द्वितीय स्थान पर हिलता डुलता है उससे सुनंदा का निर्माण किया जाता है बाकि अन्य स्तभों द्वारा देवी शक्तियों के हाथ पैर बनाये जाते हैं।
मुख्या मेले का आयोजन अष्टमी से किया जाता है। इस की शुरुवात ब्रह्ममुहूर्त से ही शुरू कर दिया जाता है। जिसमे स्थानिया महिलाएं मांगलिक परिधानों में पधारकर भगवती पूजन के लिए मंदिर में प्रवेश करती है साथ ही रात्रि में चंदवंशीय प्रतिनिधियों द्वारा पूजा सम्पन्न कर बलिदान किये जाते हैं। नवमी के दिन माँ नंदा और सुनंदा को डोलो में बिठाकर अल्मोड़ा और आसपास के क्षेत्रो में शोभायात्रा के रूप में निकाली जाती है | 3-4 दिन तक चलने वाले इस मेले का अपना एक धार्मिक महत्व है |
नंदा देवी मेला महोत्सव का इतिहास
हर पर्व एवं मेले की तरह नंदा देवी मेला महोत्सव का भी अपने आप में महत्वपूर्ण इतिहास रहा है। जिसक उल्लेख केवल स्थानिया लोगों द्वारा ही नहीं किया जाता बल्कि नंदा देवी मेला महोत्सव का वर्णन पौराणिक कथाओं और उपनिषद्में में भी किया गया है। इतिहास के अनुसार नंदा देवी मेले का आयोजन अल्मोड़ा में चंद्र वंश के शासन काल से ही मनाया जा रहा है। जिसकी शुरुवात राजा बहादुर चंद्र के शासन काल से ही देखने को मिलता है। वही दूसरा तथ्य कहता है की नंदा देवी की प्रतिमा पहले गढ़वाल के पंवार वंश के पास हुआ करती थी। जिसे बाद में जा बहादुर चंद्र उठा कर अल्मोड़ा लाया गया था। इससे यह पता चलता है की गढ़वाल के पंवार राजाओं की भांति कुमांऊ के चन्द राजाओं की कुलदेवी भी नंदादेवी ही थीं। इसलिए दोनों जगह इस पर्व को मनाये जाने का प्रावधान रहा है।
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार यह भी कहा जाता है की एक दिन कमिश्नर ट्रेल नंदादेवी चोटी की ओर जा रहे थे रास्ते में अचानक उनकी आखों की रोशनी चली गई। जिसके बाद उन्होंने लोगो की सलाह ली और अल्मोड़ा में नंदा देवी का मंदिर बनाकर माँ नंदा देवी की प्रतिमा स्थापित की। बाद में हस्यमय ढंग से उनकी आंखों की रोशनी लौट आई।