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उत्तराखंड के चार धाम

by Surjeet Singh
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चार धाम का नाम सुनते ही हमारें मन में केदार नाथ और बद्रीनाथ मंदिर की आस्था भरी एक प्यारी सी छवि प्रस्तुत हो जाती है।  जैसा की हम सभी लोग इस बात से भलीभांति परिचित है की उत्तराखंड को धरती का स्वर्ग कहा जाता है और इसके स्वर्ग कहे जाने के पीछे भी ऎतिहासिक महत्व रहा है। देवो की देवभूमि यानि की उत्तरखंड के पवित्र स्थानो में से  चार प्रमुख पवित्र स्थानो को चार धाम यानि की छोटे चार धामों की संज्ञा दी गई है।  उत्तराखंड क्लब के आज के इस लेख में हम आपको उत्तराखंड के चार धामों के बारें में जानकारी देने वाले है।  छोटे चार धामों की सम्पूर्ण जानकारी के लिए लेख को अंत तक जरूर पढ़े।

उत्तराखंड के चार धाम कौन कौन से है

उत्तराखंड के सभी पवित्र स्थानों  में से चुने गए चार प्रमुख स्थानों  को चार धाम के नाम से जाना जाता है ये चार धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ और यमनोत्री, गंगोत्री माने जाते है।  इन चार छोटे धामों की यात्रा करके एक एक धाम की यतत्र मानी जाती है।  इन छोटे चार धामों का अपना अलग ही धार्मिक और पौराणिक महत्व माना जाता है।  धार्मिक ग्रंथों में भी छोटे चार धामों का उल्लेख देखने को मिलता है। देवो की निवास स्थली होने के कारण उत्तराखंड को देव भमि के नाम से भी जाना जाता है। आस्था भक्ति के प्रतिक इन चार धामों के बारें में बताया जाता है  की छोटे चार धामों की यात्रा करके मनुष्य के सारे पाप धूल जाते है वह जीवन और मरण के बंधन से मुक्त हो जाते है यही वो चार धाम है।

हर साल लाखो की संख्या में भक्तों का आवागमन यहाँ पर लगा रहता है। न केवल देश के बल्कि विदेशों से भी यहाँ पर पर्यटक आया करते है।  जहाँ गर्मियों में  यात्रा  शुरू होती है वही सर्दियों में इन पवित्र स्थलों के कपाट बंद किये जाते है।  चलिए इन चारो धामों के बारें में जानते है और इनके पौराणिक महत्वा को भी समझते है।

केदारनाथ धाम

केदारनाथ धाम चारों प्रमुख धामों में से एक है।  जो की उत्तराखंड राज्य के रुदप्रयाग जिले के अंतर्गत आता है।  आस्था और भक्ति का प्रतिक यह धाम 12 ज्योर्तिर्लिंगो मे से एक है। समुद्र तल से 11746 फिट ऊंचाई में  स्थित केदारनाथ अपने विशाल शिव मंदिर के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है।  तीनो दिशाओ में  पहाड़ों से घिरे केदारनाथ मंदिर का निर्माण  8 वीं ईस्वी में आदि-शंकराचार्य द्वारा एक विशिष्ट शैली कत्यूरी शैली के अंतर्गत कटमा पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर किया गया है। मंदिर में भगवन शिव जी बैल के पीठ की आकृति पिंड के रूप में पूजे जाते है। मान्यता के अनुशार जब भगवान  शिव जी बैल के रूप से अंतर्ध्यान हुए तो शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, जटा कल्पेश्वर में, नाभि मद्महेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इसे पंचकेदार में से एक माना जाता है। सर्दियों में मंदिर के कपाठ बंद किये जाते है भगवान शिव जी की बैल रूपी प्रतिमा को उठा कर उखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में स्थापित किया जाता है।  जहाँ भगवान शिव जी सर्दियों तक पूजे जाते है।

केदारनाथ धाम का पौराणिक महत्वा 

केदारनाथ धाम का पौराणिक गाथाओं में भी महत्व देखने को मिलता है। किंवदंतियों के अनुसार ऐसा माना जाता है की पहले यहाँ भगवान विष्णु के अवतार नर और नारयण तपस्या करते थे।  उनकी आराधना को देखते हुए भगवान शंकर प्रसन्न हो कर प्रस्तुत हुए और उनकी प्रार्थनानुसार सदा ज्योतिर्लिंग के रूप में वास करने का वचन पूर्ण  किया।

बताया जाता है की कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बाद पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे।  जो की भगवान शिव के दर्शन से ही मुमकिन हो पाना था। लेकिन भगवान शिव जी पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे इसलिए वहाँ से अंतर्ध्यान हो कर भगवान शिव जी केदार में जा बसे।  पांडवों से बचने के लिए भगवान शिव जी ने बैल रूप धारण किया।  लेकिन पड़वों के वहाँ पहुंचते ही भीम ने उन्हें पहचान लिया की ये कोई और नहीं बल्कि भगवान शिव जी है। भीम जी ने अपना विशाल रूप धारण करके अपने पैर दो अलग अलग पहाड़ की छोटी में रख दिए।  जब सभी बैल भीम जी के परों तले से निकले लगे तो शिव रूपी वह बैल वही खड़ी हो गई।  भीम जी ने पहचान कर तुरंत उनको पकड़ना चाहा लेकिन वह शिव रूपी बैल डर के कारण जमीन में अंतर्ध्यान हो गए।  केवल पीठ वाले भाग का पकड़े जाने के कारण भगवान शिव जी उनके साहस को देख कर प्रसन्न हुए और दर्शन देकर उन्हें भ्रातृहत्या के पाप से मुक्त कर दिया।

बदरीनाथ धाम

बद्रीनाथ धाम चार छोटे धामों में से एक है जो की चमोली जिले के नर और नारायण पर्वतों के मध्‍य स्थित है। 108 दिव्य देसमों में से एक यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार बद्रीनारायण को समर्पित है।  समुद्रतल से 3133 मी० की ऊंचाई पर स्थित  इस मंदिर का निर्माण वैद्धिक काल का माना जाता है लेकिन  8वीं शदी में आदि शंकराचार्य ने  पुनरूद्धार किया था।  यहाँ पर भगवान विष्णु की बद्रीनारायण के रूप में पूजा की जाती है।  बताना चाहिँगे की पंच बद्री में से एक बदरीनाथ में बद्री महाराज की पूजा गर्मियों में की जाती है। सर्दियों में बद्री महाराज की डोली को जोशीमठ के नरसिंघ मंदिर में राखी जाती है|

बदरीनाथ धाम का पौराणिक महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब पीड़ित मानवता की रक्षा के लिए माँ गंगा जी ने धरती पर कदम रखना तय किया तो एक तरफ संकट का विषय था की पृथ्वी  माँ गंगा के प्रवाह को सहन नहीं कर पायेगी।  जिसके बाद माँ गंगा ने आपने आप को 12 भागों में विभाजित किया और इन्ही 12 भागों में से एक भाग को माँ गंगा का स्थान माना जाता है जिसे अलकनंदा नदी कहा जाता है।  यह भगवान विष्णु के निवास स्थान के लिए जानी जाती है।

गंगोत्री धाम

माँ गंगा के उद्गम स्थल को गंगोत्री धाम के नाम से जाना जाता है जो उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित है।  यह भारत के चार छोटे धामों से एक है जिसका पड़ाव दूसरे स्थान पर यानि की यमनोत्री के बाद आता है समुद्रतल से  980 फीट की उचाई पर स्थित यह स्थल  भारत के पवित्र स्थलों  में से एक है। इसीलिए इसे हिंदू धर्म में गंगोत्री को मोक्षप्रदायनी माना गया है। माना जाता है की यहाँ की यात्रा करके इंसान के सारे पाप धूल जाते है।  बताया जाता है की यही वह स्थल है जहाँ पर माँ गंगा ने धरती को स्पर्श किया था।  देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी नदी के संगम से ही यह गंगा जी के नाम से जानी जाती है।  गंगोत्री धाम मंदिर का निर्माण  गोरखा के कैप्टेन अमर सिंह थापा ने  आदि गुरु आदि शंकराचार्य के सम्‍मान में मंदिर का निर्माण कराया था।  मंदिर का निर्माण विशेष सफ़ेद पत्थरों से किया गया है जो की 20 फीट ऊंचा है । यह प्रसिद्ध मंदिर भागीरथी नदी के बाएं किनारे पर स्थित है  मंदिर के समीप भगीरथ शिला के साथ अन्य देवी देताओं की शिला भी स्थापित है|

गंगोत्री धाम की पौराणिक अवधारणा

हर एक पवित्र स्थल की तरह गंगोत्री धाम की भी पौराणिक अवधारणा रही है बताया जाता है की  राजा सागर के अश्वमेध यज्ञ के चलते घोड़े खो जाने के कारण उन्होंने अपने 60000  पुत्रों को भेजा।  घोड़े खोजते हुए वह साधु कपिला के आश्रम में जा पहुंचे। परेशान हो कर उन्होंने  आश्रम और साधु पर हमला कर दिया। नाराज ऋषि कपिला ने क्रोध में आकर अपनी ज्वलंत आंखों को खोला तो सभी 60,000 पुत्र अभिशाप के कारण  राख में बदल गए। बाद में अंशुमन  ने देवी गंगा से प्रार्थना कि वह अपने रिश्तेदारों की राख साफ करने के लिए धरती पर आये।  इस कार्य में असफल होने के बाद भगीरथ के कठिन तपश्या के बाद माँ गंगा ने धरती पर आई।

यमुनोत्री धाम

देवी यमुना को समर्पित यह धाम उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में  स्थित है।  जिसे देवी यमुना का निवास एवं यमुना नदी का उद्गगम  स्थल माना जाता है।  समुद्र तल  से 4421 मी० की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर कालिंद पर्वत की चोटी  पर बनी हुई है। यह चार छोटे धामों का पहला पड़ाव रहता है जहाँ से चार धाम की यात्रा शुरू होती है। मंदिर के निर्माण विषय के बारें में बताया जाता है की पहले मंदिर का निर्माण देवी यमुना को समर्पित करते हुए 1919  में  टिहरी गढ़वाल के राजा प्रतापशाह ने  किया था | बाद में भूकंप से विध्वंश होने के कारण मंदिर का पुनः निर्माण 19वीं शताब्दि में  जयपुर की प्रसिद्ध महारानी  गुलेरिया ने करवाया था। जहाँ पहले असित मुनि का निवास स्थान था। यहाँ पर देवी यमुना की पूजा की जाती है वही देखे तो सर्दियों में देवी यमुना की मूर्ति  को उत्तरकाशी के खरसाली गांव में स्थापित किया जाता है जहाँ अगले छ: महीने तक  देवी की पूजा वही की जाती है।

यमुनोत्री धाम की पौराणिक अवधारणा

भारतीय पौराणिक कथाओं में यमनोत्री धाम का विशेष महत्व देखने को मिलता है कहा जाता है की माँ देवी यमुना भगवान सूर्य देव की पुत्री और शनि देव जी की बहन मानी जाती जाती है। मान्यता है की भैयादूज वाले दिन जो भी श्रद्धालु यहाँ यमुना नदी में  स्नान करते है। भगवान यम  मृत्यु के समय उन्हें पीड़ित नहीं करते है।  यमुना नदी में  स्नान मोक्ष प्राप्ति के सामान माना जाता है।  इसलिए इस मंदिर में भगवान यम की पूजा का भी विशेष महत्व माना जाता है।

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