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उत्तराखंड के प्रमुख वाद्य यंत्र

by Surjeet Singh
उत्तराखंड के प्रमुख वाद्य यंत्र

उत्तराखंड अपनी संस्कृति और परम्परा के तौर पर पुरे देश विदेश में मशहूर है।  यहाँ के रीती रिवाज और परम्पराएं सदियों से ही लोगों को अपनी और आकर्षित करते  आ रही है।  शायद यही कारण है की विदेशों में भी उत्तराखंड की लोक संस्कृति की झलक देखने को मिल जाती है।  यहाँ की हर एक वस्तु एवं चीजों का अपना अलग महत्व है।  जिस तरह से उत्तराखंड की प्राकृतिक सुंदरता लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती है तक उसी प्रकार से यहाँ के लोगों का रहन- सहन तौर -तरीका और जीने का अंदाज भी  लोगों को प्रभावित करता है।  उत्तराखंड के वाद्य यंत्र जिनके मधुर ध्वनि से ही लोग प्रफुल्लित एवं एकत्रित होने लगते है उत्तराखंड की सांस्कृतिक के महत्वपूर्ण अंग है जिनके बिना राज्य की संस्कृति अधूरी है।  आज इस लेख के माध्यम से हम आपको उत्तराखंड के  प्रमुख वाद्य यंत्रों के बारें में जानकारी देने वाले है।

उत्तराखंड के प्रमुख वाद्य यंत्र

  1. ढोल
  2. दमाऊं ( दमामा )
  3. मशकबीन
  4. डौंर और थाली
  5. रणसिंघा
  6. मोछंग
ढोल

ढोल उत्तराखंड के प्रमुख एवं सबसे ज्यादा उपयोग में आने वाले वाद्ययंत्रों में से एक है।  अपनी मधुर ध्वनि से यह बहुत से लोगो को प्रफुल्लित करते है।   यह मुख्या रूप से शादी एवं किसी भी शुभ मोहरत में उपयोग में लाया जाता है।  ढोल अधिकतर ताबें एवं साल की लकड़ी के माध्यम  से बनायें जाते है।  इसकी दोंनो तरफ खाल की पुड़ी लगी हुई होती है जिसके माध्यम से यह तरह तरह के मधुर ध्वनिया निकलती है।

दमाऊं ( दमामा )

ढोल और दमाऊ दोनों एक साथ उपयोग में आने वाले वाद्ययंत्रों में से एक है।   लोक वाद्ययंत्रों की पहचान ढोल और दमाऊं धार्मिक नृत्य से लेकर अन्य सभी शुभावसरों में प्रयोग किये जाते है।  दमाऊं कटोरी के आकार में बना एक वाद्ययंत्र है जिसको ताबें की सहायता से बनाया जाता है।  इसके मुख पर मोटी पुड़ी लगाई जाती है।  जिसको पीटने से ही ध्वनि उत्पन्न होती है।

मशकबीन 

मशकबीन  उत्तराखंड के प्रमुख वाद्ययंत्रों में से एक है।  शादी विवाह के शुभ मोहरत में उपयोग आने वाला यह वाद्ययंत्र चमड़े के एक थैली की तरह प्रयोग किया जाता है।  जिसमे दो पाइप होते है जिसमें से एक पाइप में हवा भर दी जाती है तथा दूसरे पाइप को बासुरी के रूप में प्रयोग किया जाता है।  बाकि के अन्य पाइपों को कंधें में रखा जाता है।  इसकी मधुर एवं मंत्रमुग्ध कर देने वाली ध्वनि हजारों लोगों को अपना दीवाना बना देती है।

डौंर और  थाली

डौंर हाथ और लकड़ी के साम्य से बजने वाला यह वाद्ययंत्र सांदण की ठोस लकड़ी को खोखला करके बनाया जाता है  जिसके दोनों छोड़ों में बकरें की खाल चढे होते है।  बताना चाहेंगे की डौंर को बजाने के लिए एक विशेष तकनीक दोनों घुटनों के बीच रख कर बजाया जाता है।  इसका उपयोग मुख्यतः जागर में किया जाता है।

रणसिंघा

ताबें से बना यह  वाद्य यंत्र रणसिंघा उत्तराखंड  के  प्रमुख वाद्य यंत्रों  की श्रेणी में से एक है।  यह एक नाल के रूप में होता है जो की मुख की ओर संकरा होता है तथा ध्वनि के निकलने  की ओर चौड़ा होता है।  इसे मुहा से फूंक मार कर बजाय जाता है।  इसका उपयोग दमाम के साथ किया जाता है।  शादी पार्टी और देव नृत्य के समय यह प्रयोग में लाया जाता है।

मोछंग 

मोछंग  उत्तराखंड का प्रमुख वाद्ययंत्र है जो की  लोहे की पतली शिराओं से बना हुआ छोटा-सा वाद्य यन्त्र होता है।  जिसे होठों पर स्थिर कर एक अंगुली की सहायता से बजाया जाता है। होठों की हवा के प्रभाव तथा अंगुली के संचालन से इससे मधुर ध्वनि  निकलते हैं। इसका उपयोग मुख्यतः पशु चरवाहों द्वारा किया जाता है।

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