उत्तराखंड शुरू से ही वीर एवं महान लोंगो का घर रहा है। देवभूमि में जन्मे हर एक व्यक्ति का राज्य को सक्षम बनाने में अहम् भूमिका रही है । इनके द्वारा हमेशा ही जनहित में कार्य किये गए है इनका मुख्या प्रयास जनकल्याण रहा है। एक बड़े स्तर पर कार्य करते रहने से वह आंदोलन का रूप धारण कर लेती है और आज के इस लेख के माध्यम से हम आप लोगों के साथ उत्तराखंड के प्रमुख वन आंदोलन के बारें में बात करने वाले है। वीर लोगों को आज भी इन आंदोलनों के माध्यम से याद किया जाता है।
- रंवाई आन्दोलन
- चिपको आन्दोलन
- रक्षा सूत्र आंदोलन
- मैती आंदोलन
- वन आंदोलन
- पाणी राखो आंदोलन
रंवाई आन्दोलन
भारत में स्वंत्रता पूर्व उत्तराखंड राज्य के टिहरी जनपद में राजा नरेंद्रशाह के शासन काल के दौरान एक नया कानून लागु किया गया था। इस कानून के तहत जितने भी किसानो की कृषि भूमि है। उन सभी जमींनो को वन भूमि में बदला जायेगा। इसका विरोध करते हुए रंवाई के किसानो द्वारा आजाद पंचायत की उद्घोषण करके शासन के खिलाफ विरोध किया। 30 मई 1930 में आंदोलन के चलते दिवान चक्रधर जुयाल के आदेश पर सेनानियों द्वारा किसान आंदोलनकारियों पर गोलिया चला दी गयी। जिससे कई हजारो किसान शहीद हो गए।
चिपको आन्दोलन
चिपको आंदोलन 1973 में उत्तराखंड चमोली जनपद में वन परिसर के अंतर्गत पेड़ो की रक्षा के लिए महिलाओ व पुरुषों द्वारा चलाया गया था इस आंदोलन के तहत ग्रामीण लोगो द्वारा वृक्षों पर लिपट कर वृक्षों की रक्षा की थी। इस आंदोलन में महिलाओ द्वारा अधिक संख्या में भाग लिया गया था। इस आंदोलन में मुख्य आंदोलनकारी गौरा देवी ,सुन्दरलाला बहुगुणा ,कामरेड गोविन्द सिंह रावत ,व चंडी प्रसाद भट्ट ने अहम् भूमिका निभाई थी
रक्षा सूत्र आंदोलन
रक्षा सूत्र आन्दोलन 1994 में टिहरी गढ़वाल के भिलंगन क्षेत्र पर आरम्भ हुआ था। इस आंदोलन में स्थानीय लोगो द्वारा वृक्षों पर रक्षा सूत्र बांध कर वृक्षों की रक्षा की थी। यह आंदोलन सरकार द्वारा 2500 वृक्षों को कटवा के लिए चुना गया था जिसके पश्चात् वृक्षों का कटाव शुरू होता उससे पहले स्थानीय लोगो ने रक्षा सूत्र आंदोलन शुरू किया जिसके बाद सरकार द्वार 2500 चिह्नित किये गए वृक्षों का कटाव का प्रस्ताव रोका गया। इस आंदोलन का मुख्य उदेश्य उचाई पर स्थित वृक्षों की रक्षा करना था।
मैती आंदोलन
इस आंदोलन की सुरुवात 1996 में चमोली जिले के ग्वालदम क्षेत्र से हुई थी। मैती शब्द का अर्थ मायके से है। इस आंदोलन में विवाह के पश्चात् वर वधु एक वृक्ष रोपड़ करते हैं। वधु के ससुराल जाने के पश्चात उसके माता पिता उस पोंधे की अपनी बेटी समझ कर उस पौंधे की रक्षा करते हैं।
वन आंदोलन
चमोली जिले में सन 1973 वृक्षों का अत्यधिक कटाओ होने के कारण इस आंदोलन को चलाया गया था। इस आंदोलन में वन विभाग के कर्मचारियों द्वारा वनों की कटाई का किसान विरोध कर रहे थे। व वन विभाग के कर्मचारी वनो पर अपना सम्पूर्ण अधिकार जता रहे थे।
पाणी राखो आंदोलन
यह पाणी रखो आन्दोलन 1989 पौढ़ी गढ़वाल के उफरैंखाल गांव से सुरु हुआ था यह आंदोलन मुख्य रूप से बंजर भूमि व वनो पुनः हरयाली में परिवर्ती किया जाये। इस आंदोलन के संस्थापक सच्च्दिनंद भारती जी थे। इस आंदोलन में भरी सांख्य में भाग लिया गया था। यह आंदोलन ग्रामीण से जनपद व जनपद से राज्य स्तर तक पहुंच गया था