उत्तराखंड की परम्पराएं संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है। जो उत्तराखंड को एक अलौकिक छवि प्रदान कर्त्ता है। उत्तराखंड में चित्रकारिता का इतिहास प्राचीन है। जिनका उल्लेख ग्रंथों में भी देखने को मिलता है। चित्रकारों द्वारों ऐतिहासिक निर्माण किए गए। जिनके चलते आज भी विभिन्न सी चित्रकला शैलियों को जीवंत रखा गया है। आज के इस लेख के माध्यम से हम आपको उत्तराखंड की प्रमुख चित्रकला शैली के बारें में जानकारी देने वाले है।
उत्तराखंड चित्रकला का इतिहास
उत्तराखंड चित्रकला का इतिहास प्राचीन है। महान कलाकार होने के साथ साथ प्रसिद्ध निर्माण शैलियाँ भी मौजूद थी। जिनके वजह से ही उत्तराखंड चित्रकारिता को दुनिया के सामने रख कर एक माला में पिरोया गया। निर्माण की विभिन्न शैलियाँ मौजूद होने से कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जिनके निर्माण को उचित सम्मान के साथ राज्य के विभिन्न संग्रहालयों में अलंकृत किया गया। जो आज भी अपने जीवंत महत्व के साथ विध्यमान है। उत्तराखंड चित्रकला के इतिहास को गढ़वाल चित्रकला के नाम से भी जाना जाता है। मौजूदा समय के प्रसिद्ध चित्रकारों में मोलराम प्रमुख हुवा करते थे।
उत्तराखंड की प्रमुख चित्रकला शैली
- गुलेर चित्र शैली
- ऐपण चित्र शैली
- ज्यूंति मातृका चित्र
- बसोली चित्र शैली
- भित्ति चित्र शैली
- लक्ष्मी पौ चित्र
- पोथी चित्रण
गुलेर चित्र शैली
उत्तराखंड की प्राचीनतम चित्रकला शैलियों में से एक गुलेर चित्र शैली प्रमुख है। जिसे कांगड़ा कलम चित्रशैली का विकसित रूप माना जाता है। हम यह भी कहा सकते है की राज्य को चित्रकारिता के क्षेत्र में पहचान दिलाने का श्रेय गुलेर शैली को ही जाता है। यह शैली राजा हरिचन्द्र के कार्य अवधि के समय प्रचलन में आई। कलाकार शहरी क्षेत्र में खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे थे जो भाग कर पहाड़ी क्षेत्र में आकर बसे और उन्हें राजाओं के दरबार में अपनी चित्रकला प्रदर्शन करने का अवसर प्राप्त हुवा।
ऐपण चित्र शैली
चौकी एवं दहलीज को शौंदर्यपूर्ण बनाने वाली विशेष शैली को ऐपण शैली कहा जाता है। उत्तराखंड चित्रकला में इस शैली का योगदान अधिक देखने को मिलता है। जो की खास तौर पर धार्मिक अनुष्ठानों एवं मांगलिक कार्यों के अवसर पर प्रयोग में लाई जाती है। ऐपण चित्र शैली के अंतर्गत तीन उंगलियों के माध्यम से चित्रण किया जाता है। जिसमें लाल मिटटी एवं चावल के घोल से सूर्य, शंक, पुष्प आदि का मनोरम चित्रण किया जाता है। किवदंती है की ऐपण कला के बिना धार्मिक पूजा एवं त्यौहार अधूरें है।
ज्यूंति मातृका चित्र
इस शैली के चित्रों में मुख्या रूप से देवी देवताओं के साथ भगवान के रूपों का चित्रण का देखने को मिलता है। विभिन्न प्रकार के रंगो से कपडों एवं लकड़ी पर बड़ी ही खूबसूरती के साथ आकृतियों का चित्रण किया जाता है। यह शैली दिवाली एवं नवरात्री व जन्माष्टमी के समय प्रयोग में लाई जाती है।
बसोली चित्र शैली
सन 1950 में बसोली चित्रकला सामने आई। जिसमें मुख्या रूप से प्राकृतिक सौन्दर्यता का प्रस्तुतिकरण करते हुए नारी के यौवन रूप का चित्रण देखने को मिलता है। चित्र शैली के इतिहास से जानकारी प्राप्त होती है की इस कला का आरंभ हिन्दू धर्म में लोक कलाओं के माध्यम से हुआ। लेकिन बाद में इस शैली के चित्रों में मुग़ल कला समवन्य देखने को मिलता है।
भित्ति चित्र शैली
स्त्री एवं पुरुषों के अनुपम सौंदर्य का चित्रण भित्ति चित्र शैली में प्रदर्शित है। इस शैली के चित्रों की मुख्या विशेषता है की इसमें बारीक़ और कोमल रेखाओं का प्रयोग देखने को मिलता है। जिसके माध्यम से मानव शरीर व स्त्री के रूपों को गहनों के साथ चित्रण मिलता है। साथ ही ऐतिहासिक जगहों जैसे ताजमहल, लाल किल्ला जैसे स्मृतियों का चित्रण भी किया गया है।
लक्ष्मी पौ चित्र
उत्तराखंड की प्रमुख चित्रकला शैली,लक्ष्मी पौ चित्र इस विशेष शैली का प्रयोग दिवाली के शुभावसर पर देखने को मिलता है। इस शैली के अंतर्गत लक्ष्मी माँ के पद चिन्हों द्वारा घर के मुख्या द्वार एवं पूजा गृह के स्थान पर पवित्र चिन्हों को उकेरा जाता है।
पोथी चित्रण
इस चित्र शैली का प्रयोग पुरोहितो द्वारा किया जाता था। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर जानकारी एकत्रित होती है की पोथी चित्र शैली का प्रयोग जन्म कुंडली, वर्ष फल एवं पंचांग पर विशेष तरह से प्रयोग किया जाता था।