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उत्तराखंड लोकपर्व लिस्ट कैलेंडर 2023

by Surjeet Singh

उत्तराखंड की संस्कृति में त्यौहारों और लोक पर्व का योगदान काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐतिहासिक और पौराणिक तौर पर उत्तराखंड की संस्कृति में विभिन्न त्यौहारों और लोकपर्व मानाने का प्रचलन रहा है। आज के दौर में भी कई प्रकार के लोकपर्व ऐसे है जो हमें केवल उत्तराखंड में देखने को मिलते है। उन्ही त्यौहारों की दिनांक श्रेणी उत्तराखंड लोकपर्व लिस्ट कैलेंडर 2023 हम आप लोगों के लिए लेकर आये है। इस मुख्या जानकारी को अपने परिवार एवं मित्रगण के साथ जरूर साझा करें।

 

क्रम सं० लोक पर्व का नाम मनायें जाने का दिन दिनांक 2023
1 मकर संक्रांति ( घुघुतिया त्यौहार )

 

1 गते ( जनवरी ) 14 जनवरी
2 फूलदेई चैत्र मास का प्रथम दिन 14  मार्च
3 चैतोल त्यौहार चैत माह की अष्टमी ( चैत्र पूर्णिमा) 06 अप्रैल

 

4 बिखोती ( विषुवत संक्राति ) बैशाख माह के प्रथम दिन 14 अप्रैल
5 हरेला त्यौहार श्रावण माह की पहली गते को 18  जुलाई
6 घी – संक्राति ( ओलगिया ) भादों ( भाद्रपद ) महीने 1 गते ( संक्राति ) 17 अगस्त
7 लोकपर्व सातूं-आठू

 

भाद्रपद मास की सप्तमी व अष्टमी को 6 – 7 सितम्बर
8 खतड़वा त्यौहार अश्विन माह की संक्राति को 17  सितम्बर

 

चैतोल त्यौहार – चैतोल पर्व  देवी देवताओं के आस्था से जुड़ा हुवा है। हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाने वाला यह लोक पर्व हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा से एक दिन पहले से शुरू हो जाता है।  यह लोकपर्व दो दिन तक मनाये जाने का प्रावधान रहा है।  पहले दिन भगवान शिव जी  के प्रतिक के रूप में एक छत्र तैयार किया जाता है। जिसे यात्रा के साथ 22 गावों में ले जाया जाता है।    

लोकपर्व फूलदेई का त्यौहार    – उत्तराखंड प्राकृतिक खूबसुरता का एक जगमाता उदाहरण है। जब प्रकृति वसंत ऋतु  में प्रवेश करती है तो प्रकृति की खूबसूरती का कोई ठिकाना नहीं होता।  यह हरे भरे दिखने के साथ साथ हजारों प्रकार के फूलों से चमचमाती है।  प्रकृति के इस रूप का शुक्रगुजार करने के लिए उत्तराखंड के निवासियों द्वारा लोकपर्व फुलदेई को मनाया जाता है।

बिखोती ( विषुवत संक्राति ) – मान्यता के अनुसार आज के दिन अपने देवी देवताओं को भोग लगा कर स्थानिया लोगो द्वारा भव्य मेले का आयोजन किया जाता है।  अपनी परम्परागत यादों को संजोता यह पर्व बिखौती त्यौहार, स्याल्दे बिखौती मेला, स्याल्दे मेला, आदि नामों से जाना जाता है।

हरेला त्यौहार –  हरेला उत्तराखंड के प्रमुख लोकपर्वों में से एक है।  जो की श्रावण माह की पहली गते को मनाया जाता है।  उत्तराखंड में ऋतू परिवर्तन का बड़ा ही महत्व माना  जाता है। श्रावण माह की पहली गते से प्रकृति अपना नया रूप धारण करती है एवं उत्तराखंड कृषि के अनाज उगने  शुरू हो जाते है।  इसी खुशी के उपलक्ष्य में हर श्रावण माह की पहली गते को हरेला पर्व मनाया जाता है।

घीसंक्राति ( ओलगिया ) – जब नई नई लहराती हुई सुन्दर सी दिखने वाली फसल पर बालिया लगने लग जाती है तो उसकी ख़ुशी और अच्छी फसल की कामना करते हुई हर साल घी संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है।  जिसे कई स्थानिया बोलियों में घी त्यार, घ्यू त्यार या ओलगिया के नाम से भी जाना जाता है।

लोकपर्व सातूं-आठू –  इस त्यौहार में देवी गौर जी के साथ महेश जी की पूजा की जाती है।  सातूं-आठू  नाम पड़ने के पीछे मान्यता है की सप्तमी को माँ गौरा ससुराल से रूठ कर अपने मायके चले जाती है तथा अष्टमी को भगवान महेश जी उन्हें लेने वह आते है।  इसलिए इस पर्व को सातूं-आठू पर्व के नाम से जाना जाता है।

खतड़वा त्यौहार –  उत्तराखंड राज्य में प्रकृति के हर ऋतू आगमन पर विशेष पर्वों को मनाये जाने का प्रावधान रहा है।  जिनमे से एक है खतडुवा पर्व जो की शीत ऋतू के आगमन पर हर वर्ष हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है खतडुवा पर्व हर वर्ष भगवान सूर्य देव के सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करने के दौरान मनाया जाता है।  जब भगवान सूर्य सिंह राशि की यात्रा समाप्त करके कन्या राशि में प्रवेश करते है तब आश्विन मास की संक्रांति के रूप में  उत्तराखंड वासी पावन पर्व का महोत्सव मानते है

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