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उत्तरखंड का लोकपर्व सातूं-आठू

by Surjeet Singh
उत्तरखंड का लोकपर्व सातूं-आठू

उत्तराखंड अपने पारंपरिक लोकपर्वों के लिए पुरे देश विदेश में मशहूर है। यहाँ पर मनाये जाने वाले पर्वों और लोकपर्वों की अपने आप धार्मिक महत्व के साथ साथ पौराणिक महत्व भी होता है।  अपनी संस्कृति को जीवंत रखते यहाँ के निवासी हर वर्ष त्यौहारों को बड़े हर्ष उल्लास के साथ मानते है। उन्ही लोकपर्वों में से एक है सातूं-आठू का त्यौहार  का त्यौहार।  उत्तराखंड क्लब के आज के इस लेख के माध्यम से हम आप लोगों के साथ उत्तरखंड का लोकपर्व सातूं-आठू के बारें में जानकारी साझा करने वाले है।  त्यौहार की सम्पूर्ण जानकारी के लिए लेख को अंत तक जरुरु पढ़ना।

सातूं-आठू का पर्व क्या होता है

सातूं-आठू  उत्तराखंड के प्रसिद्ध त्यौहारों में से एक है।  बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाएं जाने वाले इस त्यौहार में देवी गौर जी के साथ महेश जी की पूजा की जाती है।  सातूं-आठू  नाम पड़ने के पीछे मान्यता है की सप्तमी को माँ गौरा ससुराल से रूठ कर अपने मायके चले जाती है तथा अष्टमी को भगवान महेश जी उन्हें लेने वह आते है।  इसलिए इस पर्व को सातूं-आठू पर्व के नाम से जाना जाता है। सप्तमी और अष्टमी के दिन लोगों द्वारा गौरा महेश की प्रतिमा बनाई जाती है।  सप्तमी के दिन माँ गौरा की सुन्दर सी प्रतिमा बना कर मक्का, तिल, और बाजरे के पौधें की सहायता से सजाया जाता है।  ठीक उसी क्रम में अगले दिन भगवान महेश की प्रतिमा बनाई जाती है।  आस्था और भक्ति का प्रतिक यह पर्व उत्तराखंड के सभी जिलों में उत्सव के साथ मनाया जाता है।

उत्तरखंड का लोकपर्व सातूं-आठू कब मनाया जाता है

अन्य पर्वों की भांति भी  इस पर्व के मनाये जाने का निश्चित दिन व समय रखा गया है।  हिन्दू पंचांग के अनुसार उत्तरखंड का लोकपर्व सातूं-आठू हर वर्ष भाद्रमाह के सप्तमी – अष्ठमी को मनाया जाता हैं। उत्तराखंड के निवासियों के लिए इस दिन का बड़ा ही महत्व माना जाता है।  खास तौर राज्य की महिलाओं द्वारा इस पर्व का बड़े ही बेसब्री से इन्तजार किया जाता है। सभी लोगों द्वारा बड़ी ही भक्ति भावना के साथ पर्व को मनाया जाता है।  पर्व आने के कुछ दिन पहले से ही  सभी लोग इसकी तैयारियों में जुट जाते है।  जो की इसके ख़ुशी और महत्व को दर्शाता  है।  बताना चाहिँगे की सातूं-आठू लोकपर्व 2023 में  30-31  अगस्त  को मनाया जायेगा।

लोकपर्व सातूं-आठू किस तरह से मनाया जाता है

लोकपर्व सातूं-आठू को उत्तराखंड के निवासियों द्वारा बड़े ही श्राद्ध भाव से मनाया जाता है। भाद्रपद की पहली पंचमी से ही तैयारियां शरू की जाती है। अपने दिन की शुरुवात सभी लोगों द्वारा सुबह स्नान करके किया जाता है। इच्छुक व्यक्तियों द्वारा आज के दिन उपवास रखा जाता है जो की रात्रि के भोजन के समय तक सीमित रहता है।साफ ताबें के वर्तन में गौ माता के गोबर से पंच चिन्ह ऐपण करके दुब अक्षत किया जाता है।  उसके बाद पारंपरिक तौर तरीके से इसमें पांच या साथ प्रकार के अनाज भिगोने डाल दिए जाते है। इन अनाजों में मुख्यतः गेहू ,चना, सोयाबीन, उड़द ,मटर,गहत, के बीज शामिल होते है।

सप्तमी के दिन इन्हें जल श्रोत पर धोकर रिवाज पूर्ण किया जाता है।  पर्व के अंतिम दिन यानि की अष्टमी के दिन प्रसाद के रूप में सभी लोगों द्वारा ग्रहण किया जाता है।

सप्तमी में किया जाता है  माँ पार्वती का श्रृंगार

लोकपर्व सातूं-आठू पर्व को उत्तराखंड निवासियों द्वारा सभ्य एवं भक्ति भावना से मनाया जाता है।  पर्व के मुख्य अंश सप्तमी के दिन विधि अनुसार बिरूड़ो को जल श्रौत में धोया जाता है। यह कार्य केवल महिलाओं द्वारा ही किया जाता है।  बिरूड़ो को वापस पूजा स्थल  में रख कर महिलाओं द्वारा गमारा दीदी(पार्वती ) की श्रृंगार किया जाता है।  लेकिन उससे पहले सभी महिलाओं द्वारा सोलह श्रंगार करके धान के खेत से एक विशेष पौधा सौं और धान के पौधे को लाया जाता है। डलियों को सजाकर प्रचलित लोकगीतों के माध्यम से  गमारा दीदी को  बिरूड़ो पूजा स्थल पर रख कर पूजा करते है गौरी माँ से सभी महिलाओं द्वारा अखंड सौभाग्य और संतान प्राप्ति के लिए गले व हाथ मे पीली डोर धारण करती हैं।  पुरोहित सप्तमी की पूजा करते है और महिलाएं द्वारा लोकगीतों के माध्यम से लोकनृत्य किया जाता है।

अष्टमी को आते है महेश जी गौरा को मानाने

लोकपर्व सातूं-आठू में अष्टमी के दिन की बहुत महत्व माना जाता है। मान्यता है की आज के दिन भगवान शिव जी माँ पार्वती को मानाने उनके मायके आये थे।  इसलिए आज के दिन सभी महिलाओं द्वारा खेतों से डलिया में सौं और धान के पौधे लेकर महेश्वर की प्रतिमा का निर्माण करते है। लोकगीतों के माध्यम से उन्हें माँ पार्वती के साथ स्थापित किया जाता है।  पंडित जी पूजा करते हुये सभी द्वारा बिरुड़ चढ़ाया जाता है।  तथा महिलाओं द्वारा बिरुड़ अष्टमी की कथा सुनी जाती है।

उत्तरखंड का लोकपर्व सातूं-आठू का महत्व

जैसा की हम आपको पहले ही बता चुके है की उत्तराखंड में हर लोकपर्व का अपने आप में बड़ा ही महत्व होता है।  और इस लेख को पढ़ने के बाद आप सभी जान गए होंगे की सातूं-आठू पर्व का महिलाओं के जीवन में कितना महत्व है।  बताना चाहते है की सातूं-आठू  पर्व के शुभावसर पर सभी महिलाएं  अखंड सौभाग्य और संतान की मंगल कामना भगवान महेश – गौरा से करते है।

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