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उत्तराखंड के प्रमुख लोक नृत्य

by Surjeet Singh
उत्तराखंड के प्रमुख लोक नृत्य

उत्तराखंड में लोकनृत्यों का प्रचलन सैकड़ों वर्षों से रहा है।  राजा महाराजाओं के समय से ही नृत्य को महत्व दिया गया है। किसी खास या शुभावसर पर लोकगीतों के साथ लोकनृत्य का होना उत्तराखंड में एक इतिहास बना हुवा है।  और उन्ही रीती रिवाजों को जीवंत रखते हुए प्रदेश के निवासियों द्वारा विभिन्न प्रकार के लोकनृत्य किये जाते है आज हम आप लोगों के साथ उत्तराखंड के प्रमुख लोक नृत्य  के बारें में जानकारी साझा करने वाले है।

उत्तराखंड के प्रमुख लोक नृत्य
  1. चौंफला नृत्य
  2. चांचरी नृत्य
  3. घुघुती नृत्य
  4. जागर नृत्य
  5. पौणा नृत्य
  6. झुमैलो नृत्य
  7. भैलो-भैलो नृत्य
  8. थड़िया नृत्य
चौंफला नृत्य

चौंफला नृत्य उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में एक लोकप्रिय नृत्य है।  जिसे स्त्री और पुरषों द्वारा टोली बनाकर किया जाता है। पौराणिक श्रंगार भाव को प्रकट करता यह नृत्य लोगों में आपसी मेल मिलाप के उद्देश्य से किया जाता है। किवदंती है की इस नृत्य को माँ पार्वती ने भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए किया था।  चौंफला नृत्य की खासियत यह है की इस नृत्य को करने के लिए वाद्य यंत्र की जरुरत नहीं पड़ती।  बल्कि हाथों की ताली, पैरों की थाप, झांझ की झंकार, की मधुर ध्वनि के साथ किया जाता है।

चांचरी नृत्य

कुमाऊं के प्रसिद्ध नृत्यों में चांचरी नृत्य प्रमुख माना जाता है। चांचरी गीत के साथ किया जाने वाला यह नृत्य  वाद्य यंत्र हुड़की  बजाकर किया जाता है।  यह नृत्य उत्तरखंड का एक श्रृंगार प्रधान नृत्य है जिसमें महिलाओं एवं पुरषों द्वारा हिस्सा लिया जाता है। यह बसंत ऋतु में चाँदनी रात में किया जाने वाला एक खूबसूरत से नृत्य है।

घुघुती नृत्य

प्यारें से छोटे बालक-बालिकाओं द्वारा मनोरंजन हेतु किया जाने वाला यह नृत्य प्रकृति के नए रूप से प्रेम व्यक्त करने के लिए किया जाता है।  इसमें सभी छोटे बच्चें टोली बनाकर खूब हसी और ख़ुशी के साथ नृत्य किया करते है।  अब धीरे धीरे यह नृत्य समाप्ति की ओर है क्यों की आज के समय में गांव के गांव खाली हो गए है। कही न कही लोग  उत्तराखंड की संस्कृति को भूलते जा रहे है।

जागर नृत्य 

जागर नृत्य गढ़वाल एवं कुमाऊं क्षेत्र में पौराणिक गाथाओं पर आधारित होता है। जागर नृत्य के द्वारा उत्तराखंड  देवी देवताओं का आह्वान किया जाता है। यह एक विशेष प्रकार का नृत्य है।  जिसके माध्यम से देवी देवताओं के द्वारा संवाद प्राप्त किया जाता है।  ढोल-दमाऊ ओर थाली के माध्यम से जागर नृत्य किया जाता है।  नृत्य करने वाले को देवता का स्वरूप माना जाता है। जिसे पस्वा कहा जाता है ।

पौणा नृत्य

उत्तराखंड के प्रमुख लोक नृत्य में शामिल पौणा नृत्य भोटिया जनजाति का लोकप्रिय नृत्य है।  लेकिन आज कल यह नृत्य उत्तराखंड में सब जगह देखने को मिल जाता है। एक तरह का नृत्य जो की शादी एवं किसी शुभ अवसर के दौरान किया जाता है मनोरंजन के उदेश्य से किया जाने वाला यह नृत्य बैंड बाजें के साथ टोली के माध्यम से की जाती है।

झुमैलो नृत्य

गढ़वाल एवं कुमाऊँ का लोकप्रिय नृत्य झुमैलो नव विवाहित महिलाओं द्वारा मायके आने पर किया जाता है।  इसमें गांव के सभी महिलाएं शामिल होकर नृत्य की शोभा बढ़ाते है।  पारमपरिक रीती रिवाजों एवं सांस्कृतिक पहनावें के माध्यम से किया जाने वाला यह नृत्य टोली बना कर किया जाता है।  जिसमें महिलाओं के माध्यम से ही लोक गीत झमेलों का वादन किया जाता है।

भैलो-भैलो नृत्य 

उत्तराखंड के प्रमुख लोक नृत्य  में शामिल भैलो-भैलो नृत्य दीपावली के अवसर पर किया जाने वाला एक  विशेष प्रकार का नृत्य है।  जिसे भैलो ( एक प्रकार का लकड़ी का गाँठ )  के माध्यम से खेला जाता है।  इसमें भेलों को अपने सर के ऊपर से घुमाने के दौरान भैलो-भैलो की ध्वनि के साथ किया जाता है।  दीपावली के अवसर पर चाँद लगा देता है यह नृत्य।

थड़िया नृत्य

वसंत पंचमी को किया जाने वालें नृत्य को थड़िया नृत्य कहा जाता है।  उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में  नव विवाहित लड़कियों द्वारा टोली बना कर थड़िया नृत्य किया जाता है।  कहा जाता है की जो लड़किया शादी के बाद पहली बार अपनी मायके आये होते है उनके द्वारा इस नृत्य को बड़े ही एकता भाव के साथ सांस्कृतिक पहनावें के माध्यम  किया जाता है।

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